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ग़ज़ल
दिल में है दूद आह तो दिल दूद-ए-आह में
अब्र-ए-सियाह घर में घर अब्र-ए-सियाह में
सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी
ग़ज़ल
यूँ दूद आह का मिरी गुम्बद बँधा है याँ
छत जैसे अब्र-ए-तीरा की तहतुस्समा बंधे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
करें सफ़ेद भी घर को मिरे अगर मे'मार
तो दूद-ए-आह से फ़ौरन स्याह हो जावे
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
ख़ार ख़ार-ए-दिल ग़नीमत जानता हूँ इश्क़ में
ज़ुल्फ़-ए-दूद-ए-आह की आरास्तगी काशाना है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
लगा दी आतिश-ए-ख़ामोश क्या सोज़-ए-मोहब्बत ने
इलाही ख़ैर दूद-ए-आह-ए-सोज़ाँ दिल से उठता है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
दिल-ए-सद-चाक का शाना मिरा टूटा तिरे हाथों
वगर्ना ज़ुल्फ़-ए-दूद-ए-आह सुलझाने के काम आता
वली उज़लत
ग़ज़ल
दूद-ए-आह-ए-दिल-ए-सोज़ाँ है 'मुबारक' अपना
जो धुआँ शम्अ से बलीन-ए-मज़ार उठता है