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ग़ज़ल
जिस दिन वो मिलने आई है उस दिन की रूदाद ये है
उस का बलाउज़ नारंजी था उस की सारी धानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
दो दिन की मसर्रत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमें रूदाद-ए-हस्ती रात भर में ख़त्म करनी है
न छेड़ो और अफ़्साने सितारो तुम तो सो जाओ
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
जो कुछ भी रूदाद-ए-सुख़न थी होंटों की दूरी से थी
जब होंटों से होंट मिले तो यक-दम बे-रूदाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
नियाज़-ओ-नाज़ की रूदाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का क़िस्सा
ये जो कुछ भी है सब उन की हमारी दास्ताँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
बढ़ा लोगे अगर तुम फ़ासले मुझ से कभी 'आज़िम'
तो रूदाद-ए-दिल-ए-नाशाद फिर किस को सुनाओगे
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
वो अहद-ए-ग़म की काहिश-हा-ए-बे-हासिल को क्या समझे
जो उन की मुख़्तसर रूदाद भी सब्र-आज़मा समझे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हम को है मालूम सब रूदाद-ए-इल्म-ओ-फ़ल्सफ़ा
हाँ हर ईमान-ओ-यक़ीं वहम-ओ-गुमाँ बनता गया