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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहुत आए हमदम ओ चारा-गर जो नुमूद-ओ-नाम के हो गए
जो ज़वाल-ए-ग़म का भी ग़म करे वो ख़ुश-आश्ना कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
कहते ही नश्शा-हा-ए-ज़ौक़ कितने ही जज़्बा-हा-ए-शौक़
रस्म-ए-तपाक-ए-यार से रू-ब-ज़वाल हो गए