aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سر_شاخ_جاں"
हवाएँ भरने लगीं ख़ुश्बूओं के पैमानेजो चंद फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ निकल आए
ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदनये कैसा फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ खिला हुआ है
यहाँ जो है तनफ़्फ़ुस ही में गुम हैपरिंदे उड़ रहे हैं शाख़-ए-जाँ से
शाख़-ए-जाँ सूखती जाती है तमामदर्द का फूल खिला जाता है
शाख़-ए-जाँ पे ये प्यार की शबनमपहले मेरी थी अब तुम्हारी है
न गुल कोई दिल के शजर पर खिलान कोई समर शाख़-ए-जाँ में रहा
किसी पे बर्क़ गिरी शाख़-ए-जाँ सुलग उट्ठीकिसी पे संग चले सर मिरा निशाना रहा
तमाम 'उम्र तिरे ग़म की आब्यारी कीतो शाख़-ए-जाँ में गुल-ए-ताज़ा का समर आया
बहुत दिनों तक ये मौसम-ए-गुल नहीं रहेगाजो शाख़-ए-जाँ पर गुलाब आएँ तो लौट आना
कि जिस की धुन पे मिरी शाख़-ए-जाँ धमाल में हैबजा है दिल में कोई जल-तरंग जानती हूँ
ये जो छोटी सी है कली सर-ए-शाख़बाग़ की बाद शाहज़ादी है
वो सर-ए-शाख़ तू महकता हुआऔर सर-ए-ख़ाक सूखता हुआ मैं
ये तू जो नहीं तुझ सा सुंदरसर-ए-शाख़ खिला है कौन है ये
हवा से है कली जुम्बाँ सर-ए-शाख़ये किन हाथों में नेज़े की अनी है
ग़मों के फूल सर-ए-शाख़ मुस्कुराते हैंउदासियों के ये मौसम कहाँ से आते हैं
ग़ुंचा जो सर-ए-शाख़ चटकते हुए देखापहलू में बहुत दिल को धड़कते हुए देखा
आबिदा थी इसी तारीक गली में डूबीसुब्ह हो जाए सर-ए-शाख़ दिखाई देगी
जो दिल-ओ-नज़र का सुरूर था मिरे पास रह के भी दूर थावही एक गुलाब उमीद का मिरी शाख़-ए-जाँ पे खिला नहीं
झुलस गए हैं सर-ए-शाख़ ख़ार गुलशन मेंन रास आया गुलाबों से इख़्तिलात अब के
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