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ग़ज़ल
बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़'
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मैं तो भोला-भाला 'वसीम' और वो फ़नकार सियासत का
उस के जब घटने की बारी आई मुझ को जोड़ लिया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
बिगड़े हुए तेवर हैं नौ-उम्र सियासत के
बिफरी हुई साँसें हैं नौ-मश्क़ निज़ामों की
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जलाल-ए-पादशाही हो कि जम्हूरी तमाशा हो
जुदा हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी