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ग़ज़ल
सय्यद सद्दाम गीलानी मुराद
ग़ज़ल
क़ौल-ओ-क़रार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू
लैल-ओ-नहार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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क़ौल-ओ-क़रार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू
लैल-ओ-नहार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू