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ग़ज़ल
नहीं है आज भी शाइस्ता-ए-आदाब-ए-मय-नोशी
वो इक रिंद-ए-बला-कश जिस का 'ताबाँ' नाम है साक़ी
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
तुझ को है ज़ौक़-ए-सकूँ ऐ दिल-ए-बेताब अभी
सुब्ह है और है तू मुंतज़िर-ए-ख़्वाब अभी
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
बेगाना-ए-हर-राहत-ओ-ग़म तुम ने किया है
मुझ पर ये करम भी ब-क़सम तुम ने किया है