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ग़ज़ल
अंदाज़-ए-ज़माना कहता है फिर मौज-ए-हवा रुख़ बदलेगी
अँगारों से गुलशन फूटेगा शबनम से शरारे निकलेंगे
अलीम मसरूर
ग़ज़ल
چمک تيري عياں بجلي ميں ، آتش ميں ، شرارے ميں
جھلک تيري ہويدا چاند ميں ،سورج ميں ، تارے ميں
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सुनते हैं अब उन गलियों में फूल शरारे खिलते हैं
ख़ून की होली खेल रही हैं रंग नहाती दो-पहरें
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
ये मेहर-ओ-माह भी उड़ते हुए शरारे हैं
कि अर्श तक है मोहब्बत के पेच-ओ-ताब की आँच
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
अंजुम-ए-ताबाँ फ़लक पर जानती है जिस को ख़ल्क़
कुछ शरारे हैं वो मेरी आह-ए-आतिश-बार के