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ग़ज़ल
गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश
तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दिल एक न इक दिन जाना था ये दिन भी आख़िर आना था
'तालिब' तुम इस का ग़म न करो ये चीज़ पराई होती है
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
तालिब-ए-दीद को ज़ालिम ने ये लिक्खा ख़त में
अब क़यामत पे मिरा वादा-ए-दीदार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
इश्क़ है दारुश्शिफ़ा और दर्द है इस का तबीब
जो नहीं इस मरज़ का तालिब सदा रंजूर है