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ग़ज़ल
इश्क़ से बेज़ार दिल ये चीख़ कर कहने लगा
इश्क़ छोड़ो आशिक़ों तन्हाइयाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
लेते हैं छीन कर दिल आशिक़ का पल में देखो
ख़ूबाँ की आशिक़ों पर क्या पेश-दस्तियाँ हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
जहाँ नासेहों का हुजूम था वहीं आशिक़ों की भी धूम थी
जहाँ बख़िया-गर थे गली गली वहीं रस्म-ए-जामा-दरी रही
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दिल आशिक़ों के छिद गए तिरछी निगाह से
मिज़्गाँ की नोक-ए-दुश्मन-ए-जानी जिगर हुई
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
हज़ारों दाग़ पिन्हाँ आशिक़ों के दिल में रहते हैं
शरर पत्थर की सूरत उन की आब-ओ-गिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
आशिक़ों ही का जिगर है कि हैं ख़ुरसन्द-ए-जफ़ा
काफ़िरों की है ये हिम्मत न मुसलमानों की