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ग़ज़ल
रस्म-ए-शादी घट रही है बढ़ रही है दोस्ती
माँ बता सकती नहीं बच्चों को अब फ़ादर का नाम
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं
ज़हर ख़ुद मैं ने पिया है कोई अफ़्सोस नहीं
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर
मैं न मर जाऊँ तुम्हारी चश्म-ए-तर को देख कर
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
मेराज की सी हासिल सज्दों में है कैफ़िय्यत
इक फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर में और ऐसी करामातें