आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "قرض"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "قرض"
ग़ज़ल
मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
सब कुछ निसार-ए-राह-ए-वफ़ा कर चुके हैं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
इन पुतलियों का क़र्ज़ चुकाता हूँ क्या करूँ
बस दिल से दिल मिलाता हूँ जब देखता हूँ मैं
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने
वो क़र्ज़ उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
जहाँ तक हो सके 'आलम किसी से क़र्ज़ मत लेना
मियाँ ये क़र्ज़-दारी ख़ैर-ओ-बरकत छीन लेती है
आलम निज़ामी
ग़ज़ल
उसे पढ़ के तुम न समझ सके कि मिरी किताब के रूप में
कोई क़र्ज़ था कई साल का कई रत-जगों का उधार था