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ग़ज़ल
पल में तोला पल में माशा पल में सब दरहम बरहम
ज़र्रा-ए-ख़ाकी नज़रें मिलाए बैठे हैं सय्यारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
तुम्हारा प्यार है न जो सुनो रत्ती बराबर है
ये ख़ुद ही देख लो तोले को माशा कौन करता है
अली रज़ा रज़ी
ग़ज़ल
पल में रत्ती पल में माशा पल में राई का पहाड़
पक चुके हैं कान सुन सुन कर सियासी गुफ़्तुगू