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ग़ज़ल
मुसल्लस का ख़त-ए-सालिस मुझे मिल कर नहीं देता
कभी क़िस्मत से वो रुक जाए तो बारिश नहीं रहती
साइमा इसमा
ग़ज़ल
ख़ता-मुआफ़ तिरा अफ़्व भी है मिस्ल-ए-सज़ा
तिरी सज़ा में है इक शान-ए-दर-गुज़र फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बे-रोए मिस्ल-ए-अब्र न निकला ग़ुबार-ए-दिल
कहते थे उन को बर्क़-ए-तबस्सुम हँसी से हम
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील