aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مدراس"
सुनो शेर 'अज़फ़री' का अहल-ए-मद्रासतुम उर्दू बीच इसे भूलो न बोलो
निर्त पे झूमें भाव पे लहकें मदिरा पी कर बहकें लोगकौन सुने जो चीख़ें दबी हैं पायल की झंकारों में
तेरे गीतों की मदमाती मदिरा कोदिन रैना पीती हूँ और पिलाती हूँ
याद कर कर अमल में लाता हूँहर सुख़न इश्क़ के मुदर्रिस का
अभी हयात का माहौल साज़गार कहाँभला हुज़ूर कहाँ और ये ख़ाकसार कहाँ
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं आतीरौशनी मेरे घर नहीं आती
सुब्ह लेता हूँ शाम लेता हूँहर घड़ी तेरा नाम लेता हूँ
ख़ल्क़ की ख़ल्क़ चली आती है मयख़ाने मेंऐसी क्या चीज़ है साक़ी तिरे पैमाने में
पर-ए-जिब्रील भी जिस राह में जल जाते हैंहम वहाँ से भी बहुत दूर निकल जाते हैं
ये मौसम पागल पुरवय्या मन मुद्रा छलकाएबिन चिट्ठी बिन पाती के ही काश सजन आ जाए
सारे अहल-ए-जहाँ में अयाल-ए-ख़ुदागब्र क्या दहरिया क्या मुसलमान क्या
जब तिरा इल्तिफ़ात हो जाएक़ैद-ए-ग़म से नजात हो जाए
ख़िरद की छाँव में नींद आ रही हैकहाँ ग़ैरत जुनूँ की खो गई है
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ केमिलता है जिस से यार न ऐसी पढ़ाई बात
यारो है 'अज़फ़री' उर्दू की ज़बाँ का वारिसअहल-ए-देहली है वो बाशिंदा-ए-मद्रास नहीं
अमृत-रस हैं उन की बातेंमदिरा का मध उन की जवानी
इस मोहब्बत में कुछ मज़ा भी नहींजिस में रंजिश नहीं बला भी नहीं
करूँ बयान अगर उस की बेवफ़ाई काज़बाँ से नाम न ले कोई आश्नाई का
लेता हूँ अपस मदरसा-ए-दिल में सबक़ मैंउस शोख़ मुदर्रिस का वहाँ जब सूँ दरस है
किसी का नाम जो लेता हूँ आह करता हूँतमाम रात यही इक गुनाह करता हूँ
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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