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ग़ज़ल
झलकता है मिज़ाज-ए-शहरयारी हर बुन-ए-मू से
ब-ज़ाहिर 'ख़ैर' हर्फ़-ए-ख़ाकसारी ले के निकला है
रऊफ़ ख़ैर
ग़ज़ल
वक़्त की रफ़्तार ने सब का बदल डाला मिज़ाज
शाएरी भी हो रही है अब नए उन्वान से
अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
सितम फ़िराक़ के सदमों ने ऐ निगार किया
जिगर को ख़ून किया दिल को दाग़-दार किया
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
कभी नग़्मा-ए-ग़म-ए-आरज़ू कभी ज़िंदगी की पुकार हम
कभी ख़ाक-ए-कूचा-ए-यार हम कभी शहरयार-ए-बहार हम
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
हर रोज़ पहले रोज़ से बेहतर मिला है ख़ौफ़
ऐसा नहीं कि एक ही जैसा रहा है ख़ौफ़
मोहम्मद शाहिद फ़ीरोज़
ग़ज़ल
रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का
हुनर सीखा है उस शमशीर-ज़न ने बेद-ए-माली का