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ग़ज़ल
ये मुआ'मले हैं नाज़ुक जो तिरी रज़ा हो तू कर
कि मुझे तो ख़ुश न आया ये तरिक़-ए-ख़ानक़ाही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिल के मुआ'मले जो थे उन में से एक ये भी है
इक हवस थी दिल में जो दिल से गुरेज़-पा भी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
चराग़ शर्मा
ग़ज़ल
जहान-ए-होश-ओ-ख़िरद के मुआ'मले हैं दराज़
किसी के गेसू-ए-आशुफ़्ता-सर की बात करो
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
तिरे करम के मुआमले को तिरे करम ही पे छोड़ता हूँ
मिरी ख़ताएँ शुमार कर ले मिरी सज़ा का हिसाब कर दे
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
मुआ'मले में मोहब्बत के बद-गुमान हूँ 'राज'
वो क्या हैं मुझ को ख़ुदा का भी ए'तिबार नहीं