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ग़ज़ल
मुनाफ़ा मुश्तरक है और ख़सारे एक जैसे हैं
कि हम दोनों की क़िस्मत के सितारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
मोहब्बत जब मुनाफ़े' या ख़सारा सोच कर करते
तो फिर हम भी तिरे दिल में गुज़ारा सोच कर करते
शहनवाज़ नूर
ग़ज़ल
तुम तो हर बात में ढूँडो हो मुनाफ़ा' लेकिन
इस मोहब्बत में तो नुक़सान भी हो सकता है
फ़ैसल इमाम रिज़वी
ग़ज़ल
मुनाफ़े'-ख़ोर दो दिन के लिए भी कर नहीं सकते
सिले में जिस अमल के नक़्द-ए-माल-ओ-ज़र नहीं मिलता
मुख़्तारुद्दीन
ग़ज़ल
मुनाफ़ा' गर कोई होता यही ब्योपार करते सब
मोहब्बत की तिजारत में फ़क़त नुक़्सान होते हैं