आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "مہندی"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "مہندی"
ग़ज़ल
रात भी काली चादर ओढ़े आ पहुँची है ज़ीने में
मेहंदी लगाए बैठी सोचे लट उलझी सुलझाए कौन
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
अब तो हँस हँस के लगाता है वो मेहंदी लेकिन
ख़ून रुला देगा उसे रंग-ए-हिना मेरे बा'द
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
दोनों का मिलना मुश्किल है दोनों हैं मजबूर बहुत
उस के पाँव में मेहंदी लगी है मेरे पाँव में छाले हैं