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ग़ज़ल
जिस दिन वो मिलने आई है उस दिन की रूदाद ये है
उस का बलाउज़ नारंजी था उस की सारी धानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
वो मुखड़ा गुल सा और उस पर जो नारंजी दो-शाला है
रुख़-ए-ख़ुर्शीद ने गोया शफ़क़ से सर निकाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
سہاوے چولی نارنجی ہرے ڈالیاں منے تیرے
چھے پاتاں میں جیوں نارنج یوں کچ پر انچل دیکھا
हाश्मी बीजापुरी
ग़ज़ल
फ़ीरोज़ी तस्बीह का घेरा हाथ में जल्वा-अफ़्गन था
नारंजी शम्ओं' से हुजरा ख़ैर की शब में रौशन था
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है
एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
उस की नाराज़ी का सूरज जब सवा नेज़े पे था
अपने हर्फ़-ए-इज्ज़ ही ने सर पे साया कर दिया
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
उंसुर है ख़ैर ओ शर का हर इक शय में यूँ निहाँ
हर शम'-ए-बज़्म नूरी-ओ-नारी है जिस तरह
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
अब वो इक सोज़-ए-निहानी भी दिलों में न रहा
अब वो जल्वे भी नहीं इश्क़ के काशानों में