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ग़ज़ल
ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया
क्या क्या हम ने कष्ट कमाए कहाँ कहाँ निरवान लिया
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
उस ने तभी निरवान के क़ाबिल नहीं जाना
उस बुत की दिल-ओ-जाँ से परस्तिश ही नहीं की
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
ख़्वाब-नगर के शहज़ादे ने ऐसे भी निरवान लिया
चाँद सजाया आँखों में और रात को सर पर तान लिया
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
शहर-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ में शोर था घटते बढ़ते निर्ख़ों का
लेकिन उस शफ़्फ़ाफ़ गली का हर लम्हा निरवान में था