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ग़ज़ल
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
गौहर-ए-शबनम-ए-गुल नय्यर-ए-आज़म हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
तिरी तल्ख़ी को चखूँ या तिरे हुस्न-ए-मआ'नी को
किताब-ए-ज़िंदगी किस ने लिखा मेरी कहानी को
फ़ैसल अज़ीम
ग़ज़ल
कार-ए-हस्ती ख़ार-ओ-गुल के दरमियाँ बनता गया
बिजलियाँ गिरती गईं और आशियाँ बनता गया
नूरुल हुदा नूर ज़बीही बनारसी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
जो मिस्ल-ए-तीर चला था कमान सा ख़म है
निगाह-ए-दोस्त में तासीर-ए-इस्म-ए-आज़म है
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
ग़ज़ल
मेरी ग़फ़लत है तिरे हुस्न-ए-मुजस्सम का ज़वाल
मुझ को तन्हाई में पुर-नूर ख़लल चाहिए है