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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
वर्ना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं
उस ने वा'दा कर लिया मैं ने भी वा'दा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कहीं ऐसा न करना वस्ल का वा'दा तो करते हो
कि तुम को फिर कोई कुछ और समझाए तो रहने दो