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ग़ज़ल
हुस्न वालों को ज़िद आ जाए ख़ुदा ये न करे
कर गुज़रते हैं जो कुछ जी में ठनी होती है
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मैं रोज़ ख़ुद से झगड़ के ख़ुद को मना रही हूँ
हाँ मेरी मुझ से ठनी हुई है तो ज़िंदगी है
आईरीन फ़रहत
ग़ज़ल
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जी पर यही ठनी है तो आज उस को छेड़ कर
खानी मुझे भी गालियाँ दो चार हो सो हो