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ग़ज़ल
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
उस ने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे
मैं ने तो उस के पाँव में सारा कलाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तेरे पहलू से जो उठ्ठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख़्स को पाऊँगा जिधर जाऊँगा
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना
पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना