aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پادشہ"
हम पादशह-ए-मुम्लिकत-ए-इश्क़ हैं नाहक़मंसूर सा मारा गया सरदार हमारा
हम हैं ऐसे फ़राख़-रू दरवेशमहफ़िल-ए-पादशह से आर नहीं
इश्क़ है पादशाह-ए-आलम-गीरगरचे ज़ाहिर में तख़्त-ओ-ताज नहीं
बैठा है तख़्त-ए-शौक़ पे जो हो के बे-रियावो पादशाह-ए-बारगह-ए-किब्रिया हुआ
ज़ख़्म को मात क्यूँ नहीं करतेदर्द ख़ैरात क्यूँ नहीं करते
तुम्हारी तिश्ना-निगाही का एहतिराम करेंफ़ुरात-ए-दश्त-ए-तमन्ना तुम्हारे नाम करें
हालात मिरे दिल को लगाने नहीं देतेआँखों में तिरे ख़्वाब सजाने नहीं देते
एक आलम पे बार हैं हम लोगआदतन सोगवार हैं हम लोग
नहीं कुछ मसअला हम को घरों काबहुत दुश्वार है बसना दिलों का
वो एक शख़्स जो महफ़िल में बोलता था बहुतसुना है अहल-ए-नज़र से वो खोखला था बहुत
वक़्त रखता है जो सँभाल के लोगढूँड कर ला वही कमाल के लोग
कभी जो रहते थे इस शहर में ख़ुदा की तरहवो मिट गए हैं मिरे नक़्श-हा-ए-पा की तरह
वफ़ा के बदले तुम्हारा इताब कैसा हैमोहब्बतों का मिरी ये जवाब कैसा है
ख़ामुशी में ही ला-जवाब न थामुस्कुराहट का भी हिसाब न था
ये मौसम फ़ासलों का है तो बे-शक फ़ासला रखनामगर दिल में मोहब्बत के दरीचों को खुला रखना
उन के घर में चाँद और तारे अपने घर में आगअपनी अपनी क़िस्मत प्यारे अपना अपना भाग
वक़्त से आगे निकलना चाहिएहम को अब पानी पे चलना चाहिए
मोहब्बत को रिया की क़ैद से आज़ाद करना हैहमें फिर आरज़ुओं का नगर आबाद करना है
कड़ी थी धूप तो साया उड़ा गया वो शख़्ससियह थी रात तो मशअ'ल जला गया वो शख़्स
हक़ ने अपने करम सती मुज कूँमुल्क-ए-ख़ूबी का पादशाह किया
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