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ग़ज़ल
था 'ज़ौक़' पहले देहली में पंजाब का सा हुस्न
पर अब वो पानी कहते हैं मुल्तान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
के-पी-के अफ़्ग़ानिस्तान है और बलोचिस्तान ईरान
सिंध है चीन में और प्यारा पंजाब अरब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
वादी-ए-सरबन में थीं जो मेहरबाँ मुझ पर 'क़तील'
वो बहारें ढूँढती हैं अब मुझे पंजाब में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ऐवानों में अम्न-ओ-उख़ूवत की जो बातें करते हैं
अपना अपना दामन देखें कश्मीर-ओ-पंजाब के साथ
रहबर जौनपूरी
ग़ज़ल
हुआ कश्मीर और पंजाब में अब तक न समझौता
इधर ये काँगड़ी माँगे उधर वो काँगड़ा समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
कहीं देखी नहीं ऐ 'शाद' हम ने ऐसी ख़ुश-हाली
चलो इस मुल्क को पंजाब में तब्दील करते हैं
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
कहें हैं रेख़्ता पंजाब में नज़र-साहिब
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ तुम उन की सुनो हुआ सो हुआ