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ग़ज़ल
तिरे ही ख़्वान-ए-ने'मत से है सब की परवरिश वर्ना
कोई च्यूँटी से हाथी तक खिला सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
च्यूँटी से सीख लेंगे हुनर उस के बा'द क्या
जाता रहेगा हाथी का डर उस के बा'द क्या
शिव ओम मिश्रा अनवर
ग़ज़ल
वो कहते हैं अजल होती है जिस की हम पे मरता है
क़ज़ा आती है जब च्यूँटी की उस के पर निकलते हैं