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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
न करम है हम पे हबीब का न निगाह हम पे अदू की है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
चलते चलते कुछ थम जाना फिर बोझल क़दमों से चलना
ये कैसी कसक सी बाक़ी है जब पाँव में वो काँटा भी नहीं
फ़हमीदा रियाज़
ग़ज़ल
दहकता है कलेजे में कसक का कोएला अब तक
अभी तक दिल के बाम-ओ-दर पे हिज्र ओ ग़म के साए हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
जो सदियों की कसक ले कर गुज़र जाते हैं दुनिया से
मुअर्रिख़ को भी उन लम्हों का अंदाज़ा नहीं होता