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ग़ज़ल
ग़रज़ घबरा उठे अल्लह-मियाँ भी इस करप्शन से
मिलेगा हुस्न भी तक़्सीम हो कर अब तो राशन से
शाम लाल रोशन देहलवी
ग़ज़ल
वो अंदलीब हूँ कि सदा मुझ को ग़म रहा
बाग़-ए-जहाँ में नख़्ल-ए-तमन्ना क़लम रहा