aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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फिर हिज्र की लम्बी रात मियाँ संजोग की तो यही एक घड़ीजो दिल में है लब पर आने दो शर्माना क्या घबराना क्या
वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ काकि किताब अक़्ल की ताक़ पर जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही
ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही हैमुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है
आप के ब'अद हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
ये सुकून-ए-जाँ की घड़ी ढले तो चराग़-ए-दिल ही न बुझ चलेवो बला से हो ग़म-ए-इश्क़ या ग़म-ए-रोज़गार कोई तो हो
आफ़तों के दौर मेंचैन की घड़ी है तू
तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल हैऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त
है तेरी याद इस दिल में लिपटी हुई हर घड़ी है तसव्वुर तिरे हुस्न कातेरी उल्फ़त का पहरा लगा है सनम कौन आएगा मेरे ख़यालात में
ख़ल्वत की घड़ी गुज़री जल्वत की घड़ी आईछुटने को है बिजली से आग़ोश-ए-सहाब आख़िर
हो चला था जब मुझ को इख़्तिलाफ़ अपने सेतू ने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हम-नवाई की
ये सोच कर कि तिरा इंतिज़ार लाज़िम हैतमाम-उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसेतेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे
न पूछ मुझ से कि शहर वालों का हाल क्या थाकि मैं तो ख़ुद अपने घर में भी दो घड़ी रहा हूँ
आप के बा'द हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
एक ऐसी भी घड़ी इश्क़ में आई थी कि हमख़ाक को हाथ लगाते तो सितारा करते
वो घड़ी-दो-घड़ी जहाँ बैठेवो ज़मीं महके वो शजर महके
वक़्त की डोर ख़ुदा जाने कहाँ से टूटेकिस घड़ी सर पे ये लटकी हुई तलवार गिरे
मैं चाहता हूँ तू यक-दम ही छोड़ जाए मुझेये हर घड़ी तिरे जाने का एहतिमाल न हो
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँदो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम हैहर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है
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