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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
अब कोई छू के क्यूँ नहीं आता उधर सिरे का जीवन-अंग
जानते हैं पर क्या बतलाएँ लग गई क्यूँ पर्वाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
मुझे कब किसी की उमंग थी मिरी अपने आप से जंग थी
हुआ जब शिकस्त का सामना तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
लियाक़त अली आसिम
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मिरे दिल के दीन को बेच कर कोई ले गया मुझे खींच कर
मिरे अंग अंग में अपना रंग जमाना हो कहीं यूँ न हो