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ग़ज़ल
माँगूँ तो सही बोसा पर क्या है इलाज इस का
याँ होंट का हिल जाना वाँ बात का पा जाना
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
तमाम फ़सलें उजड़ चुकी हैं न हल बचा है न बैल बाक़ी
किसान गिरवी रखा हुआ है लगान पानी में बह रहा है
शकील आज़मी
ग़ज़ल
जब तलक साँस है भूक है प्यास है ये ही इतिहास है
रख के काँधे पे हल खेत की ओर चल जो हुआ सो हुआ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
सुर्ख़ रहती हैं मिरी आँखें लहू रोने से शैख़
मय अगर साबित हो मुझ पर वाजिब अल-ताज़ीर हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
है बाब-ए-शहर-ए-मुर्दा गुज़र-गाह-ए-बाद-ए-शाम
मैं चुप हूँ इस जगह की गिरानी को देख कर
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
इस क़दर डूबा हुआ दिल दर्द की लज़्ज़त में है
तेरा 'आशिक़ अंजुमन ही क्यूँ न हो ख़ल्वत में है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
लाँबी लाँबी फ़स्लों के तेवर से धरती हिल जाती है
जैसे माँ डर जाए अपनी नाज़ुक ख़ुद-सर बच्ची से
बशीर बद्र
ग़ज़ल
फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद
गरचे हूँ सहमा हुआ बुनियाद हिल जाने के बाद