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ग़ज़ल
سنگار بن کا سرو ہے سو خط ترا اے شہ پری
مکھ پھول تے نازک دسے تو حور ہے یا استری
क़ुतबुद्दीन क़ादरी फ़िरोज़ बेदरी
ग़ज़ल
कभी हाथों में अपने कासा-ए-ज़िल्लत नहीं लेगा
जो है ख़ुद्दार वो ख़ैरात की दौलत नहीं लेगा
अशरफ़ याक़ूबी
ग़ज़ल
हर सुब्ह आवता है तेरी बराबरी को
क्या दिन लगे हैं देखो ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी को
ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली
ग़ज़ल
ऐ शो'ला-रूख़ इतना है तिरा रंग-ए-बदन सुर्ख़
पहने है सफ़ेद और नज़र आती है चिकन सुर्ख़