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ग़ज़ल
ये दिल लब-तिश्ना तेग़-ए-यार का है रात भर करता
सदा-ए-अल-अतश जूँ नाला-ए-शब-गीर पहलू से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
पता रक़ीब का दे जाम-ए-जम तो क्या होगा
वो फिर उठाएँगे झूटी क़सम तो क्या होगा
ख़्वाजा रियाज़ुद्दीन अतश
ग़ज़ल
जादा-ए-उम्र 'अतश' पाँव की गर्दिश ठहरी
दश्त सिमटा न कभी दामन-ए-सहरा गुज़रा
ख़्वाजा रियाज़ुद्दीन अतश
ग़ज़ल
दिन भर की 'अतश' धूप को दामन में समेटे
मैं शाम के सूरज की तरह डूब रहा हूँ
ख़्वाजा रियाज़ुद्दीन अतश
ग़ज़ल
साक़ी-ओ-रिन्द-ए-बादा-कश और पुकारें अल-अतश
आते हैं सब को ग़श पे ग़श आज शराब क्या चली
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
ग़ुबार-ए-दुनिया में गुम है जब से सवार-ए-वहशत
अतश अतश दश्त ओ कोह ओ दरिया पुकारते हैं
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
वो बेकसी है कि अल-अतश की सदाएँ ख़ामोश हो गई हैं
कहाँ है कोई हुसैन यारो कि हर तरफ़ है सराब रौशन
बाक़र मेहदी
ग़ज़ल
अतश-ए-इश्क़ की लज़्ज़त ये मिली है हम को
जा गिरें आग में और हों न दोचार-ए-दरिया