आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "आज-कल"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "आज-कल"
ग़ज़ल
छेड़ते हैं गुदगुदाते हैं फिर अरमाँ आज-कल
झूटे सच्चे कोई कर ले 'अहद-ओ-पैमाँ आज-कल
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मुक़द्दर आज-कल कुछ मेहरबाँ मालूम होता है
ज़मीं का ज़र्रा ज़र्रा आसमाँ मालूम होता है