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ग़ज़ल
अगर हाथों से उस शीरीं-अदा के ज़ब्ह होंगे हम
तो शर्बत के से घूँट आब-ए-दम-ए-ख़ंजर में आवेंगे
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
देखें तो ख़िज़र तेरे आब-ए-दम-ए-ख़ंजर को
मा'लूम नहीं आब-ए-हैवाँ किसे कहते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
मक़्दूर नहीं हम को फ़र्त-ए-दम-ए-जौलाँ पर
कर देंगे निछावर जाँ हम 'इश्वा-ए-सामाँ पर
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
जोश-ए-गिर्या ये दम-ए-रुख़्सत-ए-यार आए नज़र
अब्र-ए-जोशाँ का बँधा जैसे कि तार आए नज़र
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
उमीदें हो चुकी थीं ख़त्म यकसर ज़िंदगानी की
तुम आए तो मरीज़-ए-इश्क़ के चेहरे पे नूर आया
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आतिश-ए-दम-हा-ए-वहशत से गरेबाँ जल गया
वाए-क़िस्मत दर्द-ए-दिल का जो था दरमाँ जल गया
अब्दुल्लाह अली एजाज़
ग़ज़ल
न दिया ग़ुस्ल इसी वास्ते मुझ को पस-ए-क़त्ल
मैं नहाया हुआ आब-ए-दम-ए-शमशीर में था
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
कूचा-ए-इश्क़ में जाना न कभी भूल के तुम
है वहाँ आब-ए-दम-ए-तेग़ का हर जा छिड़काव