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ग़ज़ल
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ाएबाना किया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ताबिश कानपुरी
ग़ज़ल
वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना
जो दिलों को फ़त्ह कर ले वही फ़ातेह-ए-ज़माना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मुदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक्र-ए-आशियाना