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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कोमल जोया
ग़ज़ल
हाए मिरी मायूस उम्मीदें वाए मिरे नाकाम इरादे
मरने की तदबीर न सूझी जीने के अंदाज़ न आए
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हाए मिरी मायूस उम्मीदें वाए मिरे नाकाम इरादे
मरने की तदबीर न सूझी जीने के अंदाज़ न आए