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ग़ज़ल
घूम रहे हैं बाज़ारों में सरमायों के आतिश-दान
किस भट्टी में कौन ईंधन है जीते जाओ सोचो मत
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
आग सी इक दिल में सुलगे है कभू भड़की तो 'मीर'
देगी मेरी हड्डियों का ढेर जूँ ईंधन जला
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
सर पर ताज की सूरत धर दी उस ने ईंधन की गठरी
इश्क़ ने कैसे ख़ुश-क़िस्मत को शाह से लकड़हारा किया
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
जलते रहना काम है दिल का बुझ जाने से हासिल क्या
अपनी आग के ईंधन हैं हम ईंधन का मुस्तक़बिल क्या