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ग़ज़ल
कभी मेहर-ओ-माह-ओ-नुजूम से कभी कहकशाँ से गुज़र गया
जो तेरे ख़याल में चल पड़ा वो कहाँ कहाँ से गुज़र गया
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
तिरी बज़्म-ए-ख़लवत-ए-ला-मकाँ तिरा आस्ताँ मह-ओ-कहकशाँ
मगर ऐ सितारा-ए-आरज़ू मुझे आरज़ू-ए-विसाल है