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ग़ज़ल
अश्क तो इतने बहे 'चंदा' कि चश्म-ए-ख़ल्क़ से
क़ुर्रत-उल-ऐन-ए-अली के ग़म में बह जाती है नींद
मह लक़ा चंदा
ग़ज़ल
ख़ाना-ए-चश्म में रखते थे शब-ओ-रोज़ कि तुम
क़ुर्रत-उल-ऐन हुए राहत-ए-दीदार हुए
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
न काम आलम से है हम को न हूर-उल-ऐन-ए-जन्नत से
है इक मदहोश दाना-तर ब-दिल-होशियार से मतलब
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
सरिश्क-ए-सर ब-सहरा दादा नूर-उल-ऐन-ए-दामन है
दिल-ए-बे-दस्त-ओ-पा उफ़्तादा बर-ख़ुरदार-ए-बिस्तर है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अली विजदान
ग़ज़ल
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
ग़ज़ल
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
ये अलग बात कि उल्फ़त ने दिया कुछ भी नहीं
हम हैं बर्बाद मगर उस का गिला कुछ भी नहीं
शम्स उर रहमान शम्स
ग़ज़ल
मैं उस से बद-गुमाँ रहा उफ़ ऐ फ़रेब-ए-इश्क़
और उस ने मुझ को प्यार किया हाए क्या किया
हैरत गोंडवी
ग़ज़ल
ऐ 'मेहर' हम को चर्ख़ ने गर्दिश से रोज़-ओ-शब
मानिंद-ए-मेहर-ओ-माह ग़रीब-उल-वतन किया