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ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फिर इस की कामयाबी का कोई इम्कान ही क्या हो
अगर उस शोख़ पर दावा ही बे-बुनियाद रक्खा है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
ख़ुदा ना-कर्दा मैं और कामयाबी ग़ैर मुमकिन है
जो बर आए किसी सूरत वो मेरा मुद्दआ' क्यूँ हो
शौकत थानवी
ग़ज़ल
ख़िलाफ़-ए-तक़दीर कर रहा हूँ फिर एक तक़्सीर कर रहा हूँ
फिर एक तदबीर कर रहा हूँ ख़ुदा अगर कामयाब कर दे
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
जो कामयाबी मिली वो हमें उबूरी मिली
कुछ इम्तिहान थे बाक़ी हर इम्तिहान के बाद
प्रीतपाल सिंह बेताब
ग़ज़ल
जिन्हें मक़्सद में अपने कामयाबी हो नहीं पाती
वो जिद्द-ओ-जहद करते हैं मगर पैहम नहीं करते