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ग़ज़ल
जिस की फ़ुर्क़त ने पलट दी इश्क़ की काया 'फ़िराक़'
आज उस ईसा-नफ़स दम-साज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया
दर्द में दिल डूब कर क़तरे से दरिया बन गया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
ये क्यों सोचें कि वो दाद-ए-वफ़ा देते तो क्या होता
जो रोने पर भी पाबंदी लगा देते तो क्या होता
दौलत राम साबिर पानीपती
ग़ज़ल
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर दुखी रही काया लोगो
वीराने में चैन से सोया पा के घना साया लोगो
इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल
उड़ता बादल ढलती छाया इक इक पल में सौ सौ काया
उड़ते रोज़-ओ-शब से आगे करता है पर्वाज़ बदन