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ग़ज़ल
इरादा मेरे खाने का न ऐ ज़ाग़-ओ-ज़ग़न कीजो
वो कुश्ता हूँ जिसे सूँघे से कुत्तों का बदन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
कुत्तों का इक हुजूम जिलौ में है रात दिन
पतला दयार-ए-हुस्न में आशिक़ का हाल है
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
नहीं सोने दिया पल भर भी सारी रात कुत्तों ने
सुनाए सैंकड़ों परकार के नग़्मात कुत्तों ने
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
झाड़ी झाड़ी सूँघ रहा हूँ कोई भी ख़रगोश नहीं
कुत्तों जैसे पैर कहाँ से हर झाड़ी तक आए हैं
माजिद-अल-बाक़री
ग़ज़ल
ग़म-ए-फ़िराक़ के कुश्तों का हश्र क्या होगा
ये शाम-ए-हिज्र तो हो जाएगी सहर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
घर के दुखड़े शहर के ग़म और देस बिदेस की चिंताएँ
इन में कुछ आवारा कुत्ते हैं कुछ हम ने पाले हैं
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
फिर चला मक़्तल-ए-उश्शाक़ की जानिब क़ातिल
सर पे बरपा कहीं कुश्तों के क़यामत न करे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
जिस सम्त आँख उठती है कुश्तों का ढेर है
मक़्तल है आशिक़ों का तुम्हारी गली नहीं