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ग़ज़ल
हुई जाती है तन्हाई में लज़्ज़त रूह की ज़ाएअ'
लुटा जाता है वीराने में गंज-ए-शाएगाँ मेरा
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा कि ज़ुल्म से मा'ज़ूर है फ़लक
बर्तानिया है ख़ल्क़ की ग़म-ख़्वार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तारिक़ मतीन
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-गुल रो के गले मिल कर जो आएगी 'नसीम'
होगी सुम्बुल अफ़ई-ए-गंज-ए-शहीदान-ए-बहार
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
आह ओ फ़ुग़ाँ न कर जो खुले 'ज़ौक़' दिल का हाल
हर नाला इक कलीद-ए-दर-ए-गंज-ए-राज़ है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
समझो न हम को बे-सर-ओ-सामाँ कि हम 'जलीस'
रखते हैं दिल में गंज-ए-फ़रावान-ए-आरज़ू
ब्रहमा नन्द जलीस
ग़ज़ल
मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता
जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
'रज़िया' क्या काम हमें गंज-ए-गिराँ-माया से
हम से लोगों के लिए शेर-ख़ज़ाने हैं बहुत