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ग़ज़ल
क़ैद-ए-हस्ती में ये इक गोशा-ए-दामान-ए-ख़याल
फिर ग़नीमत है कि ज़िंदाँ में भी आज़ाद तो हूँ
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
ज़िंदगी को ज़िंदगी भर का सहारा मिल गया
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
तवज्जोह मुनइमों की नफ़' से ख़ाली नहीं होती
हवा-ए-गोशा-ए-दामान-ए-दौलत आ ही जाती है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
मिरी हमसरी का ख़याल क्या मिरी हम-रही का सवाल क्या
रह-ए-इश्क़ का कोई राह-रौ मिरी गर्द को भी न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
कुछ लिहाज़-ए-जज़्ब-ए-उल्फ़त कुछ ख़याल-ए-ज़ब्त-ए-शौक़
किस तरह हम उन से अपने ग़म का अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
उठी मौज-ए-सबा जुम्बाँ से शाख़-ए-आशियाँ पैहम
चली जाती है गोया कश्ती-ए-बुलबुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उम्मीदी क्या क़यामत है
कि दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
हिसार-ए-हर्फ़-ओ--हुनर तोड़ कर निकल जाऊँ
कहाँ पहुँच के ख़याल अपनी वुसअ'तों का हुआ