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ग़ज़ल
तख़्त और चित्र सलातीं को मुबारक होवे
बस है कूचे में तिरे साया-ए-दीवार मुझे
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
वो ऐसा तस्वीर-नवाज़ कि जिस को मैं जंचता ही नहीं
और इक मैं हर फ़्रेम के अंदर चित्र उसी का जड़ बैठा
नवीन सी. चतुर्वेदी
ग़ज़ल
अधूरे चित्र में पूरी कहानी ज़िंदगानी की
लिए नौ तूलिका कब से सजाती उँगलियाँ देखो
शुभा शुक्ला मिश्रा अधर
ग़ज़ल
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
चितर-कारी लगी खाने हमन कूँ घर हुआ चीता
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
जल्वा-फ़रमा आज है तख़्त-ए-चमन पर शाह-ए-गुल
ले कर ऐ पैक-ए-सबा चित्र-ए-सहाबी तू पहुँच
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
चारों शाने चित मिट्टी पर गिरा पड़ा हूँ 'ताबिश'
जाने किस ने दूसरी जानिब रस्सा छोड़ दिया है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
दीप जलते हैं दिलों में कि चिता जलती है
अब की दीवाली में देखेंगे कि क्या होता है