आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "चौक"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "चौक"
ग़ज़ल
वो मेरा चौंक चौंक उठना सहर के ग़म से और तेरा
लगा कर अपने सीना से सुलाना याद आता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तू ने पुकारा ही न हो
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हर बार चौंक पड़ते हैं आवाज़-ए-पा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मैं तो मैं चौंक उठी है ये फ़ज़ा-ए-ख़ामोश
ये सदा कब की सुनी आती है फिर कानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
चौंक उठते हैं 'फ़िराक़' आते ही उस शोख़ का नाम
कुछ सरासीमगी-ए-इश्क़ का इक़रार तो है