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ग़ज़ल
अब जी के डर से उस को 'बयाँ' तू न छोड़ियो
हैं मर्द वे कि बाँह को जिस की गहा गहा
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर मुदावा-ए-दिल-ए-बीमार क्या मअ'नी
मुझे छोड़ो कि मुझ को नींद सी मालूम होती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
कठिन तो बहुत है मगर दिल के रिश्तों को आज़ाद छोड़ो
तवक़्क़ो' न बाँधो कि ये इक अज़िय्यत भरा तजरबा है
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इश्क़ से बेज़ार दिल ये चीख़ कर कहने लगा
इश्क़ छोड़ो आशिक़ों तन्हाइयाँ ही ठीक हैं